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आकाश ग्रंथालय का चमत्कार

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  बहुत समय पहले की बात है, एक विशाल पुस्तकालय था जो ज्ञान की देवी सरस्वती का मंदिर माना जाता था। इस पुस्तकालय का नाम था 'आकाश ग्रंथालय', और यहाँ सभी तरह के ज्ञान की पुस्तकें संग्रहीत थीं। गाँव में एक युवक था, विवेक, जिसका सपना था कि वह ज्ञान की हर शाखा को छू ले। लेकिन विवेक गरीब था और उसके पास इतनी पुस्तकें खरीदने का साधन नहीं था। उसने 'आकाश ग्रंथालय' के बारे में सुना और वहाँ जाने का निश्चय किया। जब वह ग्रंथालय पहुंचा, तो देखा कि वहाँ कोई भौतिक पुस्तकें नहीं थीं, सिर्फ एक विशाल स्क्रीन थी जिसपर अक्षर तैर रहे थे। वहाँ के रखवाले ने विवेक से कहा, "यह 'आकाश ग्रंथालय' विशेष है, यहाँ सभी पुस्तकें आकाशीय ऊर्जा में संग्रहीत हैं। तुम जो जानना चाहते हो, बस उसका नाम लो और वह ज्ञान तुम्हारे सामने होगा।" विवेक ने जैसे ही किसी पुस्तक का नाम लिया, वह जानकारी स्क्रीन पर प्रकट हो गई। उसने देखा कि वह जितनी भी पुस्तकें पढ़ना चाहता था, वह सब उसके सामने थीं, बिना किसी भौतिक स्वरूप के। यह देखकर विवेक को आश्चर्य हुआ और उसने रखवाले से पूछा, "यह जादू कैसे संभव है?" र

कविता

बस चलना शुरु हुईं, मैंने बैग में से किताब निकाली और बैग को ऊपर सामान रखने वाली जगह पर रख दिया। मानव कॉल का लिखा मुझे हमेशा अच्छा लगता है, उनकी लिखी किताबें इतनी गहरी होती हैं की आप उसे खुद में महसूस करने लगते हो। मैं उनका ही लिखा एक उपन्यास "तितली" पढ़ रहा था। "मृत्यु" इस उपन्यास का मुख्य केंद्र थी।  शहर से निकलने से पहले ही बस एक ओर स्टॉप पर रुकी। वहाँ से एक लड़की चढ़कर मेरी बगल वाली सीट पर आकर बैठ गईं। बस चल दी। थोड़ी देर बाद अचानक वो लड़की बोली की देखो बाहर कितना अच्छा मौसम हो रहा है। इस उपन्यास की कहानी इतनी रोचक थी की मेरा ध्यान एक पल के लिए भी किताब से नहीं हटा था। मैंने खिड़की से बाहर देखा, मौसम वाकई काफी सुहावना था। मैं बोला " हांँ! काफी अच्छा है" और वापस पढ़नें में लग गया। वह बोली "अरे वाह तुम तितली पढ़ रहे हो! मुझे भी ये किताब पढ़नी थी, मैंने कल ही ऑर्डर करी है" यह सुनकर मैंने पहली दफा उसके चहरे की तरफ देखा। बड़ी बड़ी आंँखें, माथे पर चंदन का तिलक, होठों पर सरल सी मुस्कुराहठ। उसके चेहरे में तेज था और वो चमक रहा था। बड़ा ही जाना पहचाना च